Thursday, February 13, 2025
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उपभोक्ता आयोग की खूबसूरती हैं, सरल व सुलभ के साथ त्वरित न्याय

झुंझुनूं । उपभोक्ता (मंच) आयोग जैसी कोई चीज अथवा प्लेटफार्म दुनिया में विद्यमान है। यह मुझे अपनी किशोरवस्था में तब पता चला जब मैंने एक बार अखबार में एक समाचार पढ़ा कि… इतने पैसे ज्यादा लेने पर.. इतने रुपए जुर्माना लगा…। कुछ पैसे ज्यादा लेने पर बेईमान दुकानदार पर भारी भरकम जुर्माना पढ़कर मज़ा भी आया और लगा कि ऐसा होना चाहिए। यह कहना है जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग झुंझुनूं के अध्यक्ष मनोज कुमार मील का। वे कहते हैं कि  बचपन की बात पूरी तरह तो ठीक से याद नहीं, लेकिन तब यह समझ आ गया कि किसी दुकानदार द्वारा ज्यादा पैसा लेना कानूनन गलत है और इस पर जुर्माना या सज़ा हो सकती है। बाद में टीवी पर ‘जागो ग्राहक जागो’ के विज्ञापनों से मेरे जैसे कितने ही लाखों युवाओं को तब पता लगा कि एमआरपी पर तोलमोल भी हो सकती है। अब आपको इससे आगे की बात भी बताऊंगा कि एमआरपी पर तोलमोल ही नहीं, एमआरपी पर जीएसटी भी अलग से नहीं लग सकता। एमआरपी में जीएसटी शामिल होता है। यदि कोई दुकानदार एमआरपी पर जीएसटी अतिरिक्त लगाकर आपसे कीमत वसूलता है, तो आप उपभोक्ता आयोग में परिवाद दर्ज कर न्याय प्राप्त कर सकते हैं। ऊपर के मेरी किशोरावस्था के 2 उदाहरण इसलिए दिए कि भारत में उपभोक्ता हकों का बड़े पैमानों पर हनन होता रहा है, प्राचीन काल से ही, दुकानदार कम तोलकर, मिलावट करके और अन्य बहुत से तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण करते रहे हैं। इन सबके मद्देनजर ही पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न राजीव गांधी की व्यक्तिगत पहल पर देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बना। 24 दिसंबर 1986 को यह अधिनियम देश में पहली बार लागू हुआ। इसीलिए हम इस दिन उपभोक्ता दिवस मनाते हैं। अधिनियम को और सशक्त बनाने के लिए इसमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में संशोधन करते हुए जिला मंच को आयोग का दर्जा देकर न्यायिक रूप से मजबूती दी गई है। पहले जहां जिला मंच को 20 लाख रुपए तक के प्रकरण सुनने का ही अधिकार था। वहीं अब 50 लाख रुपए चुका कर ली जाने वाली सेवा के प्रकरण चाहे, वे करोड़ों रुपए के अनुतोष, हर्जा-खर्चा, मानसिक संताप की मांग के लिए हो, का जिला आयोग में परिवाद दर्ज कराया जा सकता है। संशोधित अधिनियम 15 जुलाई 2020 को राजपत्र में प्रकाशित हुआ एवं 20 जुलाई 2020 से देशभर में लागू हुआ। अधिनियम में शुरु से ही उपभोक्ताओं को कानूनी रूप से हक दिया गया कि यदि उनके (उपभोक्ताओं) साथ कहीं भी, किसी भी स्तर पर दुकानदार अथवा सेवाप्रदाता द्वारा अनुचित व्यापार-व्यवहार, सेवा दोष से मानसिक व शारीरिक पीड़ा दिए जाने की स्थिति-परिस्थिति होती है, तो उपभोक्ता आयोग का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं, जहां उनके साथ न्याय होगा। लेकिन मुद्दा यह है कि भारत में आमजन में उपभोक्ता कानूनों के प्रति जागरूकता का अभाव है। अधिकांश उपभोक्ताओं में तो उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरुकता ही नहीं है। जिनमें है, वे उपभोक्ता भी दुकानदार अथवा सेवाप्रदाता द्वारा लुटा जाना या तो अपना भाग्यवाद समझकर सहन करते रहते हैं अथवा ‘कौन कोर्ट कचहरी के लफड़े में पड़े’ की मानसिकता के चलते चुप रहते हैं, जबकि उपभोक्ता आयोग में त्वरित न्याय की व्यवस्था है। अधिनियम में 3 महीने में परिवाद के निस्तारण की व्यवस्था की गई है क्योंकि आयोग चाहता है कि न्याय होने के साथ ही न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए।
बॉक्स…
अब सवाल आता है कि जागरुकता बढ़े कैसे…
इसके 2 पहलू हैं, पहला यह कि काम हो, दूसरा यह कि काम होने का अधिक से अधिक प्रचार हो। यानी कि उपभोक्ता आयोग, चाहें वे जिला आयोग हों, या राज्य आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग, इनमें नियुक्त सदस्य एवं पीठासीन अधिकारी उपभोक्ता हितों में अधिक से अधिक फैसले देवें। जिससे आयोग में आने वाले परिवादी को यह लगे कि यह वो जगह है, जहां न्याय शीघ्र मिलेगा ही मिलेगा। वे (उपभोक्ता आयोग के पीठासीन अधिकारी एवं सदस्य) यह समझें कि संविधान ने उन्हें कितनी बड़ी जिम्मेदारी दी है। उनका एक फैसला किसी के जीवन की परेशानी कम करके उसे सुकून दे सकता है। इससे आयोग के साथ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की स्वत: ही ‘माऊथ पब्लिसिटी होगी। दरअसल ‘माऊथ पब्लिसिटी’ बहुत बड़ी चीज है। बड़े-बड़े दिग्गजों की पब्लिक इमेज़ माऊथ पब्लिसिटी से ही बनती और बिगड़ती हैं। यदि उपभोक्ता आयोग त्वरित न्याय करेंगे, तो हर जिले में, हर राज्य में और देशभर में माऊथ पब्लिसिटी होगी। न्याय पाने वाला परिवादी खुद अनेक लोगों को बताएगा कि उसके साथ यह अन्याय हुआ था और उपभोक्ता आयोग में उसे न्याय मिला। दूसरा काम है, न्याय के फैसले का अधिक से अधिक प्रचार। आमतौर पर आयोगों में न्यायपालिका के सेवानिवृत न्यायाधीश ही पीठासीन अधिकारी होते हैं। वे न्यायपालिका में अपने रिटायरमेंट की उम्र तक चले कार्यकाल में परंपरागत रूप से चली आ रही कार्य व्यवहार, व्यवस्था और परंपरा के चलते मीडिया से दूरी बनाए रखते हैं। ऐसे में उपभोक्ता आयोग में आने के बाद भी उनकी वहीं आदत बरकरार रहती है। जबकि उपभोक्ता आयोग के पीठासीन अधिकारी जितना मीडिया फ्रैंडली होंगे, उतना ही आयोग के कार्यों का प्रकाशन और प्रसारण विभिन्न मीडिया माध्यमों के जरिए होगा, जिसके आमजन में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरुकता बढ़ेगी।
तो आज उपभोक्ता दिवस पर हम सभी यह संकल्प लें कि हम जो भी वस्तु या सेवा क्रय करेंगे, उसका बिल अवश्य लेंगे एवं उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूक होने का अपना दायित्व निभाते हुए अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करेंगे।
— मनोज कुमार मील, अध्यक्ष, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, झुंझुनूं