झुंझुनूं। हाल ही में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष मनोज मील 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर नई दिल्ली के यशोभूमि में आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करके आए हैं। इस दौरान उनके अनुभव और उपभोक्ता आयोग में मामलों के त्वरित निस्तारण पर उन्होंने जिला आयोग द्वारा एक दिवस में 331 प्रकरणों के निस्तारण व त्वरित न्याय के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर कंज्यूमर्स वॉईस क्लब के सदस्यों के माध्यम से न्याया दिलवाने की जानकारी दी। उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग अध्यक्ष न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही को झुंझुनूं आने का आमंत्रण भी दिया है। इसी कार्यक्रम के अनुभव और उपभोक्ता अधिकारों के बारे में पेश है यह साक्षात्कार:

सवाल- हाल ही में भारत सरकार के उपभोक्ता मामलात मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर आयोजित राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम का क्या अनुभव रहा?
मील- राष्ट्रीय स्तर के इस कार्यक्रम में देशभर से उपभोक्ता आयोग के अध्यक्षगण, सदस्यगण एवं विशेषज्ञ शामिल हुए थे। जिनमें उपभोक्ताओं को न्याय दिलवाने में टैक्नोलॉजी का प्रयोग, ई-कॉमर्स, त्वरित निस्तारण आदि अनेक विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई। राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही ने राष्ट्रीय आयोग में 200 फीसदी निस्तारण का लक्ष्य पूरा किया है। यानी 1 मामले दर्ज की तुलना में 2 का निस्तारण करने का लक्ष्य पूरा किया गया है। उनके कार्य ने मुझे प्रभावित किया है। इसलिए 2024 में झुंझुनूं जिला आयोग के लिए भी यही लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
सवाल- अब तक जिला आयोग में पुराने प्रकरणों की क्या स्थिति है?
मील- अब तक जिला आयोग में अध्यक्ष के रूप में पद ग्रहण करने के दौरान लगभग 11 साल पुराने प्रकरणों की पेंडेंसी चल रही थी। जिनमें से 90 फीसदी प्रकरणों का निस्तारण किया जा चुका है। वर्तमान समय में मात्र 16 प्रकरण ही लंबिंत हैं। जिनका निस्तारण होते ही वर्ष 2017 तक के सभी मामले निपटाए जा चुके होंगे। आगे हमारा प्रयास रहेगा कि प्रत्येक मामले का निस्तारण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मूल भावना के अनुरुप 3 महीने में आवश्यक रूप से हो।
सवाल- कार्यक्रम में किन-किन बिंदुओं पर चर्चा हुई?
मील- कार्यक्रम में ई-कॉमर्स, उपभोक्ता अधिकार एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, उपभोक्ता मामलों के त्वरित निस्तारण में तकनीक का उपयोग, छिपी हुई शर्तों और उपभोक्ताओं के साथ नए-नए तरीकों से किए जा रहे अनुचित व्यापार-व्यवहार और सेवादोष के बारे में विस्तार से चर्चा हुई।
सवाल- आपने ई-कॉमर्स की बात की। ऑनलाईन शॉपिंग के इस जमाने में ई-कॉमर्स में भी आजकल काफी अनुचित व्यापार-व्यवहार एवं धोखाधड़ी देखने को मिलती है। इस बारे में उपभोक्ता न्याय कैसे प्राप्त करे?
मील- ई-कॉमर्स के बारे में अधिकांश उपभोक्ताओं को कानून की जानकारी ही नहीं है, यदि है भी तो आधी-अधूरी है। इसलिए वे अधिकांशतया शिकायत ही नहीं करते। जबकि ई-कॉमर्स अथवा ऑनलाईन शॉपिंग में भी उपभोक्ताओँ को वही अधिकार प्राप्त हैं, जो सामान्य दुकानदार अथवा बाजार से वस्तु या सेवा खरीदने में होते हैं। सामान्य खरीददारी अथवा ई-कॉमर्स में धोखाधड़ी होने पर उपभोक्ता द्वारा नेशनल कंज्यूमर हैल्पलाईन नं 1915 अथवा वाट्सअप नं 8800001915 पर शिकायत की जा सकती है। यहां 17 भाषाओं में शिकायत दर्ज करवाने की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा जिला उपभोक्ता आयोग में भी परिवाद दर्ज करवाया जा सकता है।
सवाल– ई-कॉमर्स के मामले में जिला आयोग के क्षेत्राधिकार से संबंधित कोई सीमा तो नहीं है?
मील- नहीं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत उपभोक्ता जहां निवास करता है, या जहां कार्य करता है, अथवा जहां से सामान या सेवा खरीदने के लिए कीमत अदा करता है, वहां परिवाद दर्ज करवा सकता है। आपको याद हो, तो पहले कई वस्तुओं पर लिखा होता था कि “समस्त प्रकार के वाद-विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र फलां –फलां होगा” यह गलत है एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मूल भावना के विपरीत है। नियमानुसार कोई भी सेवा प्रदाता एग्रीमेंट, बिल, रसीद में अधिनियम द्वारा निर्धारित क्षेत्राधिकार के विपरीत किसी स्थान विशेष का क्षेत्राधिकार निर्धारित नहीं कर सकता। यानी यदि झुंझुंनूं जिले की परिसीमा में रहकर आपने कोई भी वस्तु अथवा सेवा देश के किसी भी कोने से खरीदी हो, चाहे वह डायरेक्ट पर्चचिंग हो या ऑनलाईन, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में परिवाद दर्ज करवाया जा सकता है। इसी माह में ऑनलाईन शॉपिंग के दौरान अनुचित व्यापार-व्यवहार से जुड़ा एक प्रकरण आयोग में दर्ज भी करवाया गया है, जिस पर सुनवाई जारी है।
सवाल- यानी उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स या ऑनलाईन शॉपिंग में भी पूरे अधिकार प्राप्त हैं?
मील- बिल्कुल। उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स अथवा ऑनलाईन शॉपिंग में अनुचित व्यापार-व्यवहार, सेवादोष अथवा धोखाधड़ी होने पर बिल्कुल भी घबराना नहीं चाहिए। जिला आयोग में परिवाद दर्ज करवाने में भी बिल्कुल भी संकोच नहीं करना चाहिए। आयोग में उपभोक्ता का पक्ष तसल्ली से सुना और समझा जाता है, साथ ही विपक्षी को भी सुनवाई का अवसर देकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के मुताबिक निस्तारण किया जाता है।