झुंझुनूं। चिकित्सा विभाग कितना लाचार और बेबस है। इसका उदाहरण झुंझुनूं में आसानी से देखा जा सकता है। पिछले करीब एक पखवाड़े से एक मेल नर्स चिकित्सा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों को ‘ठेंगा’ दिखा रहा है। तो दूसरी तरफ चिकित्सा विभाग अपनी ‘बेबसी की दास्तां’ के कई एपिसोड रिलिज कर चुका है। जी, हां एक बार फिर जखोड़ा पीएचसी के नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल गायब मिले है। बुधवार को सीएमएचओ डॉ. राजकुमार डांगी जखोड़ा पीएचसी का निरीक्षण करने पहुंचे तो सामने आया कि नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल 1 मई के बाद अस्पताल ही नहीं आए। इससे पहले भी जब बीसीएमओ चिड़ावा डॉ. तेजपाल कटेवा व चिड़ावा एसडीएम बृजेश कुमार एक सप्ताह में लगातार तीन बार निरीक्षण किया तो भी नर्सिंग ऑफिसर दो बार तो बिना बताए गायब मिले थे।
वहीं एक बार निरीक्षण के दौरान अस्पताल समय से काफी देरी से पहुंचे थे और अस्पताल समय पूरा होने से पहले ही वापिस भी चले गए। इस मामले में नर्सिंग ऑफिसर को नोटिस भी दिए गए। लेकिन एक—दो नोटिसों के अलावा नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल ने किसी का जवाब नहीं दिया। बावजूद इसके चिकित्सा विभाग अपने हाथ बांधे बैठा रहा और कोई एक लैटर तक नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल को नहीं दे पाया। जबकि अक्सर एक बार ही गायब रहने वाले नर्सेज को कई बार खुद सीएमएचओ डॉ. राजकुमार डांगी ने ही सस्पैंड कर दिया होगा। पर पता नहीं क्या माजरा है नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे है। बहरहाल, अब भी सीएमएचओ डॉ. राजकुमार डांगी ने नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल को एपीओ करने की अनुमति निदेशालय से मांगी है। खास बात यह है कि अनुमति भी मांगी तो सिर्फ एपीओ करने की। निलंबित करने की अनुमति तो अभी भी सीएमएचओ डॉ. राजकुमार डांगी से नहीं मांगी गई।
चार्जशीट देने में भी रही थी चिड़ावा एसडीएम की भूमिका
नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल के मामले में बार—बार चिकित्सा विभाग पर सवाल इसलिए भी उठ रहे है। क्योंकि नर्सिंग ऑफिसर हरिसिंह पायल को चार्जशीट भी दी गई तो उसमें चिकित्सा विभाग ने एक बस इधर का उधर तक पहुंचाने का काम किया। चार्जशीट चिड़ावा एसडीएम बृजेश कुमार ने तैयार कर जिला कलेक्टर को भिजवाई। उसी चार्जशीट को अपने चिकित्सा विभाग के फोरमेट में तैयार कर सीएमएचओ ने निदेशालय को भिजवा दी। जबकि होना यह चाहिए था कि चार्जशीट के साथ ही निलंबित करने की अनुमति भी मांग ली जाती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बहरहाल, देखने वाली बात यह होगी कि चिकित्सा विभाग की ‘बेबसी की दास्तां’ कब तक जारी रहती है।
