झुंझुनूं। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होगी। इस ऐतिहासिक पल का अतीत भी कम रोचक नहीं रहा। 1990 और इसके बाद 1992 में हुई कारसेवा आज भी लोगों के जेहन में है। तब झुंझुनूं जिले से भी बड़ी संख्या में लोग कारसेवा में गए थे। सर्वाधिक लोग उदयपुरवाटी, नवलगढ़ व खेतड़ी क्षेत्र से कार सेवक अयोध्या पहुंचे थे। तब जिन हालातों के बीच कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे, उन्हें याद कर वे आज उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि तब की जलाई चिंगारी ही आज मशाल बनी है। जब वे कार सेवा में गए थे तब किसी की उम्र सौलह वर्ष थी तो किसी की बीस वर्ष। ट्रेन से अयोध्या के लिए कारसेवकों का जत्था रवाना हुआ था। जब कारसेवक दिल्ली पहुंचे, तब पता चला कि उत्तरप्रदेश सरकार ने सख्ती कर रखी है। तब पुलिस से छिपने के लिए गन्ने के खेतों से होते हुए अयोध्या पहुंचे। पैदल चलने के कारण पैरों में छाले पड़ गए। खून बहने लगा, लेकिन दिलो दिमाग में कारसेवा थी। इसलिए मंजिल तक पहुंचने से पहले रुके नहीं। इस बीच कई साथी पुलिस की गिरफ्त में भी आ गए थे। जो कई दिन जेल में रहे। यूपी के स्थानीय भाजपाइयों की मदद से जमानत करवाकर बाहर आए। अब जब राम मंदिर बन गया और वहां 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है तो कारसेवकों की आंखों में फिर चमक लौट आई है। उनकी ही जुबानी जानिए कारसेवा की कहानी…..
पहली बार पुलिस ने पकड़ लिया, लेकिन दूसरी बार में पहुंचे अयोध्या
गुड़ा गांव के सुभाषचंद सोनी तब महज 18 साल के थे। वे बताते हैं कि 18 वर्ष की उम्र में राम मंदिर निर्माण का जुनून लेकर अक्टूबर 1990 में घर से कार सेवा के लिए निकले। 7 किलोमीटर अयोध्या से दूर ही पुलिस ने खदेड़ दिया वापस घर आ गए। लेकिन मंजिल पर पहुंचना था। इसलिए दूसरी बार फिर रवाना हो गए। 2 दिसंबर 1992 रात्रि को अयोध्या पहुंच गए। 4 दिन तक कार सेवा की। बिना संसाधनों के साथी कार सेवकों के साथ ढांचे को तोड़ा। इस दौरान कई साथी गंभीर रूप से घायल हो गए। आज मन को तसल्ली मिली है कि हमारे रामलला अपनी जन्मस्थली पर विराज रहे हैं।
7 दिन तक रहे जेल में, 73 किमी पैदल चले
गुड़ा के ही राजेंद्रसिंह राणा सात दिन तक जेल में रहे थे। वे बताते हैं कि अक्टूबर 1990 में खेतड़ी के कार सेवकों के साथ 16 वर्ष की उम्र में कार सेवा करने के लिए घर से निकले थे। जंगलों व गन्नों के खेतों में छुपकर 73 किलोमीटर तक पैदल चले। अयोध्या से 7 किलोमीटर पहले पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। राम जन्मभूमि अयोध्या में नहीं पहुंचने दिया। 7 दिन तक फर्रुखाबाद जेल में रखा। उसके बाद जमानत पर बाहर आए। लेकिन इस बात की खुशी है कि मंदिर के निर्माण में योगदान है। अब 22 जनवरी को रामलला मंदिर में विराजने पर सपना साकार होगा।
17 वर्ष की उम्र में कार सेवा
उदयपुरवाटी इलाके के ककराना गांव के मूलचंद सैनी महज 17 साल की उम्र में कारसेवा के लिए घर से चले गए थे। वे उदयपुरवाटी से जत्थे में शामिल होकर कार सेवा करने के लिए रवाना हुए। कई साथियों के साथ 31 अक्टूबर 1990 को अयोध्या सरयू तट पर पहुंचे। 6 -7 दिन रुक कर कार सेवा की। वहीं साथी गोविंद राम कुमावत के घायल होने व बिछुड़ जाने के बाद उसको खोजते रहे। कहीं पैदल तो कहीं किराया मांग कर वाहनों में चलकर लगभग 15 दिन बाद वापस घर आए। वे कहते हैं कि आज खुशी है कि हमारे रामलला विराज रहे हैं। इससे बड़ी कोई खुशी नहीं हो सकती।