Monday, May 12, 2025
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बीमा अवधि में जली बस को क्लेम देने से बीमा कंपनी ने किया था इनकार, अब जिला आयोग का 45 दिन में क्लेम देने का आदेश

झुंझुनूं। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने वाहन के बीमा क्लेम के परिवाद में बीमा कंपनी को परिवादी को बीमित राशि 16 लाख रुपए, मानसिक संताप पेटे 75 हजार रुपए एवं परिवाद व्यय पेटे 7500 रुपए 45 दिन में देने के आदेश दिए हैं। 60 दिन की अवधि में पालना नहीं होने पर रकम अदायगी तक 9 फीसदी वार्षिक ब्याज चुकाने के भी आदेश जिला आयोग अध्यक्ष मनोज मील व सदस्या नीतू सैनी ने दिए हैं। गौरतलब है कि मलसीसर निवासी अनिल कुमार ने इफको टोकियों जनरल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ परिवाद दायर किया था कि उसकी बस का बस बीमा 22 जून 2019 से 21 जून 2020 की अवधि तक था। जिसके लिए उसने प्रीमियम 81 हजार 364 रुपए बीमा कंपनी को चुकाए थे। 30 अगस्त 2019 को जयपुर से पिलानी जाते समय दादिया के पास बस में खराबी आने पर उसे दुरुस्त करवाया था।

इसके बाद खुडाना से बख्तावरपुरा की तरफ रोड ब्रेकर पर गाड़ी के ब्रेक लगते ही अचानक गाड़ी से धुआं निकलने लगा। जिससे वाहन में आग लग गई और वाहन पूरी तरह से जल गया। परिवादी ने इसकी रिपोर्ट पुलिस थाना बगड़ में रोजनामचा में भी दर्ज करवाई गई। अग्निशमन को भी सूचना दी गई। जिस पर झुंझुनूं से दमकल वाहन ने पहुंच कर आग बुझाई। वाहन का फिटनेस सर्टिफिकेट व परमिट भी था। परिवादी ने वाहन में शॉर्ट सर्किट को आग की वजह बताकर बीमा कंपनी को सूचना दी। जिसके बाद बीमा कंपनी के इंजीनियर द्वारा वाहन को टोटल लोस में मानकर 6 सितंबर को शपथ पत्र व समस्त दस्तावेज देने का कहा। जिस पर परिवादी ने सभी औपचारिकताएं पूरी की। लेकिन इसके बाद बीमा कंपनी ने यह कहकर क्लेम देने से इनकार कर दिया कि कि फोरेंसिक इनवेस्टिगेशन की रिपोर्ट के मुताबिक बस में आग शॉर्ट सर्किट से नहीं लगने की बजाय किसी बाह्य कारण से लगी है। इस पर परिवादी ने जिला आयोग में 15 फरवरी 2021 को परिवाद दायर किया।

आग लगने का कारण महत्वपूर्ण नहीं है
परिवाद पर दिए फैसले में आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांत प्रतिपादित विधि के सिद्धांत “यदि बीमित आग लगाने के लिए जिम्मेदार नहीं है, तो आग लगने का वास्तविक कारण महत्वपूर्ण नहीं है। इसकी बजाय बीमा कंपनी को बीमित के प्रति क्षतिपूर्ति के दायित्व के मूल सिद्धांत की पालना करनी चाहिए” के हवाले से आदेश दिया कि बीमा कंपनी ने बाह्य कारणों को स्पष्ट नहीं किया, न ही वाहन में आग लगने के संबंध में परिवादी को जिम्मेदार ठहराया है। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांत के आधार पर बीमा कंपनी बीमा पॉलिसी के अनुसार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है।

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