Wednesday, May 21, 2025
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नेत्रहीन उपभोक्ता को गलत मीटर नंबर की बकाया राशि जोड़कर भेजा बिल दोषी कर्मचारी को चुकाना होगा

झुंझुनूं। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष मनोज मील व सदस्या नीतू सैनी ने नेत्रहीन रामस्वरूप के हक में फैसला देते हुए अजमेर डिस्कॉम के दोषी कार्मिक को 25 हजार रुपए मानसिक संताप पेटे और 7500 रुपए परिवाद व्यय पेटे हर्जाना अपने वेतन से उपभोक्ता को चुकाने के आदेश दिए हैं। उपभोक्ता आयोग ने निर्देश दिए हैं कि नियमित रूप से बिल चुकाने और सद्भावना से मामले का निस्तारण चाहने वाले सद्भावी उपभोक्ता को कानूनी मकड़जाल में नहीं फंसाया जाए। दरअसल नवलगढ़ के जाखल के रहने वाले रामस्वरूप खेदड़ ने जिला आयोग में परिवाद दायर किया था कि उनके भाई केशर देव पुत्र मामराज खेदड़ के नाम से विद्युत कनेक्शन है। केशरदेव के रोजगार के सिलसिले में पश्चिम बंगाल रहने के चलते परिवादी रामस्वरूप और उनकी माता द्वारा ही विद्युत उपभोग किया जाता है एवं नियमित रूप से बिल चुकाया जाता है। पिछला विद्युत मीटर खराब होने पर परिवादी रामस्वरूप ने मार्च 2022 में अजमेर डिस्कॉम से नया मीटर लगवाया था। तब मार्च 2022 का बिल 1146 रुपए आया तो कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते समय पर बिल जमा नहीं करवाने की वजह से पेनल्टी सहित 1186 रुपए का हो गया। इसके ठीक अगला बिल यानी मई 2022 का बिल डिस्कॉम ने 12699 रुपए का भेजा। जबकि बिल में मई माह में उपभोग की गई यूनिट की संख्या शून्य अंकित थी। इस पर परिवादी ने अजमेर डिस्कॉम कार्यालय गुढ़ागौड़जी में संपर्क किया। तो यह पीछे का बकाया बताया गया।

इसके बाद परिवादी द्वारा पड़ताल करवाने पर पता चला कि जिस पुराने मीटर का हवाला अजमेर डिस्कॉम द्वारा दिया जा रहा है। वह मीटर नंबर परिवादी के नहीं है। बल्कि किसी अन्य उपभोक्ता का हैं। परिवादी का पुराना मीटर नंबर 2513259 था, जो विद्युत बिल में भी अंकित था। जबकि अन्य विद्युत मीटर नं. 8381666 की बकाया यूनिट को बिल में जोड़ा गया था। यानी किसी अन्य उपभोक्ता के विद्युत मीटर के बिल की बकाया राशि परिवादी के खाते में जोड़कर बिल भेजा गया। परिवादी ने अधिकारियों से कई बार मौखिक और लिखित निवेदन किया। लेकिन अधिकारियों द्वारा कहा गया कि बिल जमा नहीं करवाने की स्थिति में कनेक्शन विच्छेद कर दिया जाएगा। अंत में परिवादी ने जिला आयोग में परिवाद दायर किया। यहां अजमेर डिस्कॉम के अधिकारियों ने पहले तो दायर किए हुए वाद को ही गलत बताते हुए रामस्वरूप को उपभोक्ता मानने से इनकार करने की बात कही। क्योंकि कनेक्शन रामस्वरूप के नाम से नहीं था। वहीं मीटर नंबर गलत होने की गलती लिपिकीय भूल मानी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने फैसला दिया कि चूंकि विद्युत उपभोग रामस्वरूप कर रहा है एवं उसका नियमित बिल भी चुकाता रहा है, ऐसे में वे उपभोक्ता हैं। अजमेर डिस्कॉम गुढ़ागौड़जी के कार्मिक द्वारा नेत्रहीन और सदभावी उपभोक्ता को कानूनी मकड़जाल में उलझाकर उपभोक्ता के मामले का निस्तारण करने का सद्प्रयास नहीं करना अक्षम्य कृत्य के साथ सेवा में दोष है।

आयोग की कड़ी टिप्पणी
आयोग ने टिप्पणी की है कि प्रार्थी व उसकी माता द्वारा विद्युत उपभोग करने एवं बिल की राशि चुकाए जाने तथा विद्युत कनेक्शन के संबंध में समस्त कार्यवाही करने के लिए रामस्वरूप को उसके भाई केशर देव द्वारा अधिकृत किए जाने की प्रार्थना पत्र लिखावट मय शपथ पत्र पत्रावली पर मौजूद है। प्रार्थी ने परिवाद में कोई तथ्य छिपाया नहीं है। इसलिए वे सदभावी उपभोक्ता हैं। आयोग ने अजमेर डिस्कॉम गुढ़ागौड़जी के संबंध में टिप्पणी की है कि यह कार्यालय जिला आयोग में लंबित परिवादों के जवाब में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर एवं विरोधाभाषी कथनों के साथ जवाब परिवाद प्रस्तुत करने का आदी है और उसके द्वारा विद्युत अधिनियम की सद्भावी कल्याणकारी पवित्र भावना के साथ पीड़ित की प्रार्थना का निस्तारण करने की बजाए विद्युत नीति से विपरीत जाकर मामलों को उलझाने का कुप्रयास बार-बार किया जा रहा है। इसलिए परिवाद के संबंध में अनुचित व्यापार व्यवहार व सेवा दोष के कृत्य के चलते अजमेर डिस्कॉम को होने वाले नुकसान की भरपाई परिवाद का जवाब अपनी हस्तलिपि से लिखने वाले संबंधित दोषी कर्मचारी, अधिकारी से वसूल करने के लिए विद्युत विभाग (अजमेर डिस्कॉम) को स्वतन्त्र किया जाना न्यायोचित है। आयोग ने फैसले में यह भी टिप्पणी की है कि अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (विद्युत विभाग) सरकारी विभाग है। जिसके जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के सेवा दोष व अनुचित व्यापार व्यवहार की वजह से विद्युत विभाग को नुकसान हुआ है और प्रार्थी को क्षतिपूर्ति पेटे मानसिक संताप व परिवाद व्यय की राशि का भुगतान किया जाना है। इसलिए अप्रार्थी विद्युत विभाग को निर्देशित किया जाता है कि प्रश्नगत परिवाद के संबंध में हुए नुकसान क्षति की यह राशि विभाग द्वारा उन दोषी अधिकारियों कर्मचारियों से आनुपातिक रूप से वसूल की जाए। जो उक्त अक्षम्य व्यवहार व कार्य के लिए जिम्मेदार रहे है। क्योंकि राजकीय कार्यालय द्वारा यह नुकसान व क्षतिपूर्ति का भुगतान करदाताओं के धन से होकर अंत: आम नागरिक को भुगतना पड़ता है।

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