गुढ़ागौड़जी। ऊबली का बालाजी मंदिर में स्थापित प्रतिमा पाकिस्तान के लाहौर से लाई हुई है। करीब 200 साल पुराने ऊबली का बालाजी मंदिर में स्थापित यह प्रतिमा अंग्रेजी सेना में तैनात गांव के ही एक फौजी लेकर आए थे। अज इसकी ख्याति देश-दिसावर तक फैली है। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यही कारण है कि यहां प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को भक्तों का तांता लगा रहता है। भंडारा, सवामणी जैसे आयोजन होते रहते हैं। जानकारी के मुताबिक मंदिर में विराजमान हनुमानजी की संगमरमर की मूर्ति पाकिस्तान के लाहौर से लाई गई है। यह मूर्ति जेल में बंद एक सैनिक की मनोकामना पूर्ण होने के बाद यहां विराजमान की गई थी। मंदिर के महंत जगदीश शर्मा बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे आज से करीब 200 साल पहले हुई थी। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु खेजड़ी के वृक्ष को भी धोक लगाते हैं। आस्था के अनुसार खेजड़ी के वृक्ष से मन्नत का धागा भी बांधते हैं। फिर मनोकामना पूर्ण होने पर यहां सवामणी, भंडारा अनुष्ठान आदि करते हैं। खास बात यह है कि बालाजी को लगाया गया प्रसाद भक्त यहीं बांटकर जाते हैं, कोई अपने घर नहीं लेकर जाता है।
भक्त की सुनी पुकार तो लाहौर से ले आया मूर्ति
महंत जगदीश शर्मा बताते हैं कि आजादी से पूर्व यहां के लोग अंग्रेजी सेना में भी काम करते थे। उसी दौरान गांव का एक व्यक्ति मिलिट्री में था जिसका नाम नाथूराम था। नाथूराम की ड्यूटी लाहौर में थी। किसी कारण से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जेल में बंद कर दिया। जेल में बंद नाथूराम ने गुढ़ागौड़जी के बालाजी का ध्यान किया कि अगर उसकी जेल से रिहाई होती है तो वह लाहौर से मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित करेगा। कुछ दिन बाद ही नाथूराम की जेल से रिहाई हो गई। उसने अपनी आस्था के अनुसार एक संगमरमर के पत्थर से बनी बालाजी की मूर्ति लाहौर लाकर यहां स्थापित की जो आज भी मंदिर में स्थापित है।